संस्कृति बचाने जागरुक हुए आदिवासी मतांतरण के विरुद्ध आदिवासियों ने पेसा को बनाया अस्त्र, शव दफनाने पर भी प्रतिबंध , पढ़ें पूरी खबर – गुरुआस्था समाचार

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संस्कृति बचाने जागरुक हुए आदिवासी मतांतरण के विरुद्ध आदिवासियों ने पेसा को बनाया अस्त्र, शव दफनाने पर भी प्रतिबंध ,

मतांतरण से नष्ट होती आदिम संस्कृति को बचाने के लिए बस्तर के आदिवासी अब जागरुक हो रहे हैं। मतांतरण को रोकने के लिए पेसा कानून को अस्त्र बनाकर गांव-गांव में मतांतरण विरोधी प्रस्ताव पारित कर रहे हैं। पेसा यानी पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया कानून के तहत आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार दिए गए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस केंद्रीय कानून को 2022 से लागू किया है। इसके तहत ग्राम सभा को विशेष अधिकार दिए गए हैं।

भेजरीपदर वहीं गांव है, जहां हाल ही में मतांतरित महिला वेको के शव को दफनाने को लेकर मतांतरितों और आदिवासियों के बीच विवाद हुआ था। महीने भर तक पुलिस को यहां पहरा देना पड़ा था। मतांतरित परिवार के मूल धर्म में वापसी के बाद विवाद सुलझा था। इस गांव के 250 परिवार में से 70 परिवार मतांतरित होकर आदिवासी संस्कृति से विमुख हो चुके हैं। इन सभी की मूल धर्म में वापसी की मांग ग्रामीण कर रहे हैं। गांव के मानकू सोढ़ी ने बताया, सरपंच रामधर भी मतांतरित हो चुके हैं। यहां गांव-गांव में मिशनरी के लोग सक्रिय हैं। बीमारी या अन्य परेशानी पर ये घर में प्रार्थना करवाने आते हैं और मतांतरण करवा देते हैं। आदिवासी देवगुड़ी में न जाकर चर्च में जाने लगे हैं। इसलिए आदिवासी अब अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए विशेषाधिकार का प्रयोग करने मजबूर हुए हैं।

बस्तर के रानसरगीपाल, तुमपानी, डिलीमिली, गुडरा सहित सैकड़ों गांव में इसी तरह के निर्णय पारित किए गए हैं। तोकापाल विकासखंड के सालेपाल-2 में दो महीने पहले ग्राम सभा ने इस तरह का निर्णय पारित किया था। यहां शनिवार को गांव के प्रमुख लोगों की उपस्थिति में गांव की सीमा तय की गई। सालेपाल के सरपंच सायगोराम पोयाम बताते हैं कि मतांतरण से आदिवासी संस्कृति को बचाने ग्राम सभा मेें प्रस्ताव पारित कर प्रशासन से गांव की सीमा तय करने कहा गया था, जिससे निर्णयों को लागू कर सके। सीमांकन न किए जाने पर गांव के प्रमुख लोगों की उपस्थिति में ग्रामीण स्वयं सीमांकन करवा रहे हैं। इसके बाद गांव में किसी को भी बिना अनुमति के प्रवेश करने नहीं दिया जाएगा। मतांतरितों के शव को भी गांव की सीमा में दफनाने नहीं देंगे।

बस्तर के भेजरीपदर व मटकोट गांव की सीमा के भीतर अब गांव के मतांतरितों के शव नहीं दफनाए जाएंगे। मतांतरित गांव के जल स्त्रोतों का उपयोग नहीं कर सकेंगे। मतांतरितों के घर व खेत में अब कोई आदिवासी काम नहीं करेगा। इस गांव में बिना अनुमति के अब कोई प्रवेश भी नहीं कर सकेगा। इसके लिए गांव का सीमांकन करने निर्णय भी लिया गया है। गांव के माटी पुजारी गायता, पेरमा, पटेल, कोटवार की उपस्थिति में सैकड़ों ग्रामीणों ने ग्राम सभा में पेसा कानून के तहत निर्णय पारित किए हैं। निर्णय की एक प्रति ग्रामीणों ने शुक्रवार को डिप्टी कलेक्टर एआर राणा को सौंपकर इसे लागू करवाने की मांग की है।

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