आखिरकार यूक्रेन में अबतक क्यों जीत नहीं पाया रूस, समझें 5-प्वाइंट में कारण , पढ़ें पूरी खबर – गुरुआस्था न्यूज़

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आखिरकार यूक्रेन में अबतक क्यों जीत नहीं पाया रूस, समझें 5-प्वाइंट में कारण

पूरा 1 महीना हो गया. रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध अब भी जारी है. दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में शुमार रूस की सेना पड़ोस के एक छोटे देश यूक्रेन पर पूरी ताकत से हमला करने के बावजूद अब तक अधिकार नहीं कर सकी है. जबकि रूस के सैन्य रणनीतिकारों ने अधिकतम 1 हफ्ते में यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा करने की रणनीति बनाई थी, ऐसा कहा जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वह कौन से कारण हैं, जिन्होंने इतने लंबे समय से रूस को रोका हुआ है? यहां 5-प्वाइंट में उन कारणों को समझने की कोशिश करते हैं.

प्रतिरोध और परिस्थिति का सही अंदाजा लगाने में चूक, तैयारी में कमी 

रूस ने यूक्रेन पर हमले से पहले सीमा पर लंबे समय तक करीब 1.5 लाख सैनिकों की फौज को तैनात कर के रखा. इससे लगा कि रूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए बड़ी तैयार की है. लेकिन जब हमला हुआ तो पता चला कि रूस की सेनाएं यूक्रेन के सैन्य ठिकानों के बजाय आम रिहायशी इलाकों में हमले कर रहे हैं. उनके सैन्य वाहन यूक्रेन की बर्फबारी के बीच कई जगहों पर बार-बार फंसते नजर आए. इतना ही नहीं, जवाबी हमले में यूक्रेन ने रूस के तमाम सैनिकों को हताहत किया. उन्हें गिरफ्तार किया. इससे स्पष्ट हो गया कि रूस ने यूक्रेन के प्रतिरोध और परिस्थितियों का सही अंदाज नहीं लगाया था. रूसी सेना की तैयारी लंबे युद्ध की नहीं थी.    विज्ञापन

नाटो की एकता और प्रतिक्रिया का सही आकलन नहीं कर पाए पुतिन

यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले बीते साल ही अमेरिका (US) ने अफगानिस्तान से अपने कदम पीछे खींचे थे. वहां तालिबान और आतंकियों की चुनौती बने रहने के बावजूद अपनी सेनाएं वापस बुलाई थीं. यही नहीं, जो बाइडन से पहले जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो यूरोपीय संघ के कई देशों के साथ अमेरिकी संबंध नरम-गरम नहीं रहे. नरम-गरम संबंध वालों में अमेरिका की ही अगुवाई वाले सैन्य गठजोड़ उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के सदस्य देश भी थे. तिस पर यूरोपीय संघ (EU) के लगभग सभी देशों की कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के मामले में रूस पर बड़ी निर्भरता है. इन तथ्यों के मद्देनजर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को लगा कि यूक्रेन की मदद को नाटो के सदस्य देश आगे नहीं आएंगे. ईयू के अन्य देश भी उसकी मदद से दूर रहेंगे. लेकिन उनका आकलन गलत साबित हुआ. बीते 1 महीने से भले अमेरिका की अगुवाई वाला कोई देश यूक्रेन के पक्ष में सीधे युद्ध न कर रहा हो, लेकिन उसे रूस से मुकाबले के लिए मदद हर तरह से दे रहा है.

अपेक्षा से अधिक तीखी अंतरराष्ट्रीय घेरेबंदी ने रूस को झकझोर दिया

रूस को तो यह उम्मीद रही होगी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय यूक्रेन पर उसके हमले के कारण अपनी प्रतिक्रिया देगा. लेकिन इतनी तीखी होगी, इसका शायद उसे अंदाजा नहीं था. इस वक्त दुनिया के तमाम देश रूस के करीब 400 अरबपतियों के खातों, उनके लेन-देन उनके कारोबार पर रोक लगा चुके हैं. रूस के बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की संपत्तियां जब्त हैं. रकम और लेन-देन अटका हुआ है. रूस की विदेशी मुद्रा कोष पर पाबंदी लगा दी गई है. दुनिया की कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने रूस से अपना कारोबार समेट लिया है या अपना कामकाज रोक दिया है. वहीं, दूसरी तरफ यूक्रेन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भरपूर समर्थन और सहानुभूति इकट्ठी हो रही है. यह राष्ट्रपति पुतिन के अनुमानों से ठीक उलट साबित हुआ है.

रूस ने जो धारणा बनाने की कोशिश की वह भी उलटी पड़ी

यूक्रेन पर हमले के वक्त रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में वे नव-नाजीवादी शासन से वहां की जनता को मुक्त कराना चाहते हैं. लेकिन इस वक्त वे यह भूल गए कि यूक्रेन के मौजूदा राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की खुद एक यहूदी हैं. उनके परिवार ने खुद नाजीवादी शासकों के अत्याचार सहे हैं. उनके दादाजी के भाई नाजियों द्वारा यहूदियों के कत्लेआम के दौरान मारे तक गए हैं. यही नहीं, फिर हमले के बाद भी जेलेंस्की बार-बार रूसी दुष्प्रचार-तंत्र पर भारी पड़े. उन्होंने सेना की वर्दी में कभी राष्ट्रपति भवन तो कभी सैन्य-बंकरों से अपने वीडियो बनाकर खुद जारी किए. इससे यूक्रेन की पूरी जनता उनके साथ उठ खड़ी हुई. बावजूद इसके कि रूसी दुष्प्रचार-तंत्र को दुनिया में सबसे अधिक मजबूत माना जाता है.

यूक्रेन की फौजों से जोरदार प्रतिक्रिया का भी अंदाज नहीं लगा पाया रूस

यूक्रेन की फौज ने रूस के हमले का जिस तरह जवाब दिया, वह भी रूसी सेना के लिए अपेक्षित नहीं था शायद. यूक्रेन की फौज टैंकों को नष्ट करने वाले सटीक हथियारों के साथ छोटी-छोटी टुकड़ियों में बंटी हुई है. उसके पास अमेरिकी जैवलिन मिसाइल लॉन्चर हैं, तो तुर्की के प्रभावी लड़ाकू ड्रोन भी. इसके अलावा उसे रूस की सेना द्वारा अपनाई जा सकने वाली रणनीतियों का भी अंदाजा है. क्योंकि रूस की सेना से समर्थन प्राप्त अलगाववादियों से यूक्रेन की सेना अपने डोनबास प्रांत में 2014 से ही लगातार मुकाबला कर रही है. यानी वह हर तरह से रूसी सेना की न सिर्फ प्रत्यक्ष बल्कि अप्रत्यक्ष रणनीतियों का भी माकूल जवाब दे रही है. यूक्रेन के सैनिक ही नहीं, आम नागरिक भी अपने देश को बचाने के लिए जी-जान लगाए हुए हैं, जिनके जज्बे का तोड़ अब तक रूस की सेना को सूझ नहीं रहा है.

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