गुरुआस्था समाचार
बस्तर में फैल रहा ईसाइयों के विरुद्ध आक्रोश, मिशनरियों का नक्सल कनेक्शन ,
बस्तर में ईसाई मिशनरियों को लेकर जनजाति समाज में व्याप्त रोष और आक्रोश को लेकर तमाम तरह की खबरें सामने आ चुकी हैं। इन खबरों में कभी मतांतरण की किसी घटना तो कभी किसी अन्य विवाद को जनजाति समाज के आक्रोश का कारण बताया जाता है, लेकिन हम गंभीरता से विचार करें तो समझ आता है कि जनजाति समाज के आक्रोश के पीछे केवल धर्मान्तरण ही नहीं है, बल्कि एक ऐसा नेटवर्क है जो योजनाबद्ध तरीके बस्तर के जनजातियों को लक्षित कर उनकी संस्कृति का ‘शिकार’ कर रहा है।
ईसाइयों के द्वारा बस्तर क्षेत्र में उन सभी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है जो किसी काल में अंग्रेजी सत्ता के दौरान मिशनरियां करती थीं। जनजाति समाज मूल रूप से सरल एवं शांतिप्रिय समाज है, जो अपनी संस्कृति एवं समाज में ही पूर्णता की अनुभूति करता है।
जनजाति समाज की अपनी उपासना पद्धति है जो अरण्यक संस्कृति का हिस्सा है, जिस पर मध्यकाल एवं आधुनिक काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला करने का प्रयास किया, लेकिन बावजूद इसके वह कुछ हद तक अपने मूल स्वभाव में ही बना रहा।
लेकिन बीते कुछ दशकों से जिस तरह षड्यंत्रपूर्वक जनजातियों के जन-जीवन में हस्तक्षेप कर उनकी परंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया गया है, इसने समाज के सभी वर्गों को ना सिर्फ नाराज किया है बल्कि आक्रोशित भी किया है।
इसके अलावा तमाम ऐसे कारण हैं जो समाज के भीतर विदेशी आयतित विचारों के आने से पनप रहें हैं, जिसके कारण अब समाज के लोग इस ‘संक्रमण’ से छुटकारा पाना चाहते हैं।
यही कारण है कि हमें नारायणपुर जैसी घटनाएं देखने को मिल रही है जहां आक्रोशित जनजातीय ग्रामीणों ने कुछ ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया है, जो कानूनी रूप से तो गलत हैं लेकिन यदि हम उसके पीछे के कारणों को देखें तो आसानी से समझ सकते हैं कि शांतिप्रिय तरीके से रहने वाले इस समाज को ऐसा करने की क्या आवश्यकता आन पड़ी थी।
मिशनरियों का नक्सल कनेक्शन
ईसाई मिशनरियों पर कई बार ऐसे आरोप लग चुके हैं कि उनके संबंध माओवादियों से हैं, और नक्सलियों के शह पर ही ईसाई मिशनरियां धड़ल्ले से तमाम अनैतिक गतिविधियों को अंजाम दे रही हैं।
बीते 5 दशकों में एक दो मौकों को छोड़ दें तो ईसाई मिशनरियों ने कभी किसी ईसाई पादरी पर हमला नहीं किया, कभी किसी ईसाई समूह पर हमला नहीं किया और तो और कभी किसी ईसाई केंद्र पर हमला नहीं किया।
उल्टा यह देखा गया है कि जिस ग्रामीण क्षेत्र में ईसाई संख्या थोड़ी अधिक है, वहां नक्सलियों ने किसी भी प्रकार की हिंसा की घटना को अंजाम नहीं दिया है।
वहीं दूसरी ओर, देवी उपासना में बैठे जनजातियों की हत्या से लेकर उन तमाम क्षेत्रों में हिंसा की घटना को अंजाम दिया है जो जनजातीय आस्था से जुड़े केंद्र हैं।
इसके अलावा जनजाति हितों का दिखावा करने वाले माओवादियों ने कभी भी जनजाति समाज के विरुद्ध ईसाइयों की अनैतिक गतिविधियों को लेकर किसी तरह की बात नहीं की, जिसने इस शंका को और बढ़ाया कि इन दोनों समूहों के बीच किसी प्रकार का कनेक्शन जरूर है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट, किताबों और किस्सों ने भी इस बात की गवाही दी है कि ईसाई मिशनरियां नक्सलियों-शहरी नक्सलियों को फंडिंग भी करती हैं। जमीनी स्तर पर इसका प्रभाव जनजाति समाज स्पष्ट देख पाता है, जो शहर में बैठकर नहीं देखा जा सकता। यही कारण है कि जनजाति समाज के भीतर ईसाइयों को लेकर व्यापक रोष दिखाई देता है।