योग वेदांत सेवा समिति कवर्धा के सदस्यों ने कांवरियों को वितरण किए प्रसादी, पढ़े पूरी खबर – गुरुआस्था समाचार

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योग वेदांत सेवा समिति कवर्धा के सदस्यों ने कांवरियों को वितरण किए प्रसादी

कवर्धा – सावन के इस पवित्र महीने में छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर में भगवान भोलेनाथ को जल अर्पण करने के लिए दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु का आना प्रारंभ हो गया है।

आपको बता दें कि जिला शासन प्रशासन के द्वारा कावड़ यात्रियों के लिए आवागमन में कोई परेशानी ना हो इसलिए दो पहिया चार पहिया वाहनों के लिए अलग से रूट तैयार की गई है।

वही विभिन्न संगठनों एवं धार्मिक संस्थाओं के द्वारा श्रद्धालुओं के विश्राम करने के लिए पंडाल, लंगर एवं अन्य व्यवस्था की गई है। जिससे कांवड़ यात्रियों को कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े।

इसी कड़ी में पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित योग वेदांत सेवा समिति एवं युवा सेवा संघ कबीरधाम जिले के समस्त सदस्यगणों के द्वारा प्रत्येक वर्ष कावड़ यात्रियों के लिए प्रसादी की व्यवस्था की जाती है। इस वर्ष आज सावन के प्रथम सोमवार के दिन भी राधा माधव गौशाला के सामने हजारों श्रद्धालुओं के लिए चना प्रसादी की व्यवस्था गई थी। आने वाले शेष सोमवार को भी श्रद्धालुओं के लिए प्रसादी की व्यवस्था की जाएगी। इसी प्रकार के हजारों सेवाओं के प्रेरणा स्रोत एवं करोड़ों साधकों के पूजनीय संत- पूज्य संत श्री आसाराम जी बापू को आज न्याय दिवस के दिन भी विगत 10 वर्षों से न्याय तो दूर बिगड़ते स्वास्थ्य के बावजूद भी 1 दिन के लिए भी बेल एवं पैरोल तक नहीं दी गई है यह कैसा न्याय तंत्र है।

भोरमदेव मंदिर का इतिहास

छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। माना जाता है कि इसे 11वीं सदी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। हजार सालों बाद भी यह मंदिर मजबूती के साथ खड़ा है। इस मंदिर का कलाकृतियां भक्तों को यहां खींच ले आती है यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर की आकृतियां खजुराहो के मंदिरों जैसी बनी हुई हैं।

खजुराहो के मंदिरों जैसी है बनावट

बता दें कि छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में आने वाला भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के खजुराहो नाम से जाना जाता है। कवर्धा से करीब 10 किमी दूर मैकल पर्वत समूह से घिरा यह मंदिर करीब हजार साल पुराना है। इस मंदिर की बनावट भी काफी अनोखी है। इसे खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की तरह बनाया गया है। इस मंदिर के मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं। मंदिर की दीवारों पर भी मूर्तियां बनी हुई हैं।

जिले की धरोहरों में शामिल

जिले के इतिहासकार बताते हैं कि कवर्धा जिले में विरासत के रूप में भोरमदेव मंदिर शामिल है। मंदिर की मूर्तियां नागरशैली में बनी हैं। जिसकी एक एक मूर्ति लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। मंदिर का निर्माण एक हजार साल से पहले कराया गया था। इतने सालों बाद भी यह मंदिर आज भी पूरी मजबूती के साथ खड़ा है। इसे सहेजकर रखने की जरूरत है। क्योंकि यह जिले के लिए दुर्लभ धरोहरों में से एक है।

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