गुरुआस्था समाचार
मजाक नहीं सच है : अब हवा में उगेगा आलू, फिर बनेगा सोना? ,
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में अब आलू हवा में पैदा होगा. ये मजाक नहीं है. क्योंकि फर्रुखाबाद से आलू की फसल उगाने वाले किसानों के लिए राहत भरी खबर आई है. आलू की खेती करने वाले किसानों को ऐसा बीज मिलेगा, जिससे फसल में रोग नहीं लगेगा. शृंगीरामपुर की टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला में एरोपोनिक विधि (मिट्टी के बिना हवा में पानी के जरिए) से आलू का बीज तैयार किया जा रहा है. एरोपोनिक विधि से आलू बीज तैयार करना नवीनतम तकनीक है. इस बीज से फसल में रोग और बीमारी लगने की संभावना बहुत कम हो जाती है. पैदावार के साथ आलू की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है.
शृंगीरामपुर की प्रयोगशाला में कृषि वैज्ञानिक डॉ. राहुल पाल इन दिनों मिट्टी के बिना हवा में पानी के जरिए (एरोपोनिक ) विधि से आलू का बीज तैयार कर रहे हैं. अफ्रीका से नौकरी छोड़कर यहां काम कर रहे डॉ. राहुल की यह पहल उन्नतशील किसानों की आमदनी बढ़ाने का बेहतर विकल्प है. उन्होंने बताया कि परंपरागत तकनीक से खेती कर रहे किसान अक्सर आलू में चेचक, घुघिया और अन्य रोग लगने से परेशान हो जाते हैं. रोग के कारण पैदावार घटने से आलू किसानों को आर्थिक रूप से घाटा उठाना पड़ता है. हालांकि आलू में रोग लगने का एक मुख्य कारण प्रदूषण है.
डॉ. राहुल ने बताया कि नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और शिमला के केंद्रीय आलू संस्थान (सीपीआरआई) में एरोपोनिक तकनीक से तैयार की गई पौध मिलती है. वह शिमला से आलू की पौध लाए हैं. इसके बाद स्थानीय प्रयोगशाला के ग्रीन हाउस के कोकोपिट में ये पौधे लगा दिए जाते हैं. एक माह बाद करीब चार इंच का पौधा हो जाता है. इसके बाद एरोपोनिक विधि से बीज तैयार करने के लिए पौधे को ग्रोथ चेंबर (बॉक्स) में लगाया गया.
डॉ. राहुल पाल के सहयोगी नीरज शर्मा ने बताया कि ग्रोथ चेंबर में बॉक्स के अंदर जड़ें तीन फीट तक बढ़ती हैं. पत्तियां ऊपर खुली हवा में रहती हैं. एक पौधे की जड़ में 50 से 60 आलू के बीज तैयार हो जाते हैं. मिट्टी न होने से इनमें फंगस, बैक्टीरिया नहीं लगता है. इस तरह रोग रहित बीज तैयार होता है. पौधों को पोषक तत्व बॉक्स के नीचे पाइप लाइन से जुड़े स्वचालित फव्वारे से मिलते रहते हैं. प्रोटीन, विटामिन, हार्मोन्स, माइक्रोन्यूट्रीन आदि का घोल हर पांच मिनट के बाद 30 सेकंड तक फव्वारे से निकलता है. अधिक से अधिक किसानों को लाभ मिले, इसकी रूपरेखा तैयार की जाएगी. जनपद में करीब 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आलू बोया जाता है.